भारत में लोकतंत्र की सरकार हैं, यानी लोगों द्वारा सरकारें चुनी जाती हैं. लेकिन क्या हो अगर देश की जनता भोली हो? पहले एक उदाहरण देते हैं, एक बच्चा घर के बाहर सांप से खेल रहा होता हैं. उसे रस्सी समझ कर, सांप भी बच्चे को नहीं काट रहा.
माँ बाहर आती है, बच्चे को थप्पड़ लगाती है और उसे घर के अंदर ले जाती हैं. बच्चा मन ही मन में माँ से गुस्सा हो जाता है की, सांप के बारे में माँ झूठ बोल रही हैं, उसने तो मुझे काटा ही नहीं. लेकिन इसमें आप बताये क्या माँ सच में गलत हैं? आपका जवाब होगा नहीं.
ऐसा ही कुछ भारत में हो रहा हैं, लोग इस बात को समझ नहीं रहे की कोरोना वायरस एक सांप हैं. अभी नहीं काटा तो भगवान् का शुक्र मनाएं, लेकिन बार-बार इस बिमारी से खेलकर बेवकूफी न करें. इसीलिए पुरे देश में मोदी जी ने लॉकडाउन कर दिया, जिससे कोरोना को फैलने से रोका जा सके. क्योंकि यह इंसानों से इंसानों के बीच फैलने वाली बिमारी हैं. पर अगर सब कुछ ठीक रहे तो क्या मीडिया को TRP मिलेगी? क्या विपक्षी दल राजनीतिक रोटियां सेंक पाएंगे? नहीं.
इसलिए वह लोगों में डर का माहौल बनाकर उन्हें घर जानें के लिए उकसाने लगे हैं. कल दिल्ली में आपने भीड़ देखि ही होगी. लॉक डाउन का मकसद था अगर किसी को वो कोरोना वायरस हुआ तो उसी इंसान तक सिमित रहे. लेकिन कल दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेताओं और मीडिया के पत्रकारों द्वारा लॉक डाउन का मकसद ही ख़त्म कर दिया गया.
ऐसे में सवाल यह भी उठना चाहिए की क्या विपक्ष और मीडिया भारत में लाशों का ठेर चाहते हैं? जिसके ऊपर बाद में राजनेता इसपर राजनीती कर सके और मीडिया आपने चैनल्स की टीआरपी बढ़ा सके? जर्मन के चांसलर ने दो दिन पहले ब्यान दिया था की हमारा देश दुनिया के सबसे बेहतरीन मेडिकल से जुड़े सामान बनाता हैं. लेकिन फिर भी अगर जर्मन में स्टेज 3 की स्थिति आती है तो हम कोरोना वायरस को नहीं संभाल पाएंगे.
इटली और अमेरिका जैसे देश भी इस वक़्त कोरोना वायरस को नहीं संभाल पा रहे. भारत में सोशल मीडिया पर लोग और ज्यादा हॉस्पिटल बनाने की मांग कर रहें हैं, लेकिन जब इस बिमारी का अभी इलाज ही नहीं है, उस स्थिति में हॉस्पिटल जाकर क्या करोगे?
भारत के लोगों को इस वक़्त समझना चाहिए की, समस्या कोरोना वायरस नहीं हैं. समस्या आप हैं, अगर आप दूसरों के संपर्क में आना बंद कर देंगे तो यह फैलना बंद कर देगा. माना आप आपने परिवार के साथ समय बिताना चाहते हैं, इसलिए आप घर जाना चाहते हैं.
लेकिन आपको यह भी एहसास होना चाहिए की, जिस परिवार के साथ आप इतना प्यार करते हैं. आपकी वजह से उनकी जान खतरे में पड़ सकती हैं. कोरोना वायरस की शुरुआत में इंसान को पता नहीं चलता उसे क्या हुआ हैं, मौसम भी ऐसा है की लोग इग्नोर कर देते हैं. अगर आपको लगता हैं की आप ठीक हैं, आपको कोरोना नहीं हुआ तो आप यह कैसे सुनिश्चित करेंगे की आप जिसके साथ सफर करने वाले हैं, वो सब भी ठीक होंगे?
यही एक कारण हैं की मोदी सरकार बार-बार लोगों से अपील कर रही है की आप जहाँ हैं फिलहाल वहीं रहें. इस बिमारी का अभी कोई स्थाई इलाज़ नहीं हैं. इसलिए इससे बचना ही समझदारी हैं. अगर आपको अभी भी समझ नहीं आया तो आसान और कड़े शब्दों में इटली का उदाहरण देते हैं.
इटली में इस वक़्त क्या हाल हैं, हम सबको पता हैं. लोग आपने रिश्तेदारों की लाशें तक नहीं उठाने आ रहें. सेना ही वहां पर मरने वालों हॉस्पिटल से दफनाने के लिए ले जा रही हैं. अब वहां की जनसँख्या देखेंगे तो 6 करोड़ हैं. भारत में 135 करोड़ जिसका मतलब हुआ अगर भारत में इटली जैसे हालात हुए तो जिस परिवार से आप मिलने जा रहें हैं, बाद में उस परिवार की लाशें उठाने के लिए मीडिया और राजनेता भी नहीं आएंगे जो आपको इस वक़्त घर भेजने के लिए बसों का इंतजाम करवा रहे हैं.
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मोदी जी के निर्देशों का पालन करना ही बचाव का सबसे सही तरीका है।
हम अपनी क्षमता के अनुरूप जिम्मेवारी निर्वाह कर रहे हैं मगर मेरे मन में एक सबाल बार बार आ रही है कि अगर lokdun के बाद कोई घर से बाहर निकल जाता है तो पुलिस के सामने से सामान बीबी बच्चे को लेकर लाखो लोग एक साथ दिल्ली के अलग अलग इलाको से एक जगह कईसे पहुंच गई जब हम अपने घर से बाहर निकालते हैं तो हमसे पूछा जाता है कहा जाता है ” सर दूध लेने ”